वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-जिस तरह से तीन लोगों को गोली मारकर मौत के घाट उतारा गया, उससे अंदेशा है कि वारदात में किसी बाहर के शूटर का भी हाथ हो सकता है। तीनों लोगों को सटाकर एक-एक गोली मारी गई थी। हालांकि एक मृतक की बॉडी से गोली मिली। दो मृतकों के शरीर से गोली आरपार हो गई। तीनों के शव आसपास ही पड़े थे।
मोहद्दीनपुर गौस गांव के दबंगों का दुस्साहस इस हद तक है कि तीन लोगों की हत्या के बाद एक व्यक्ति ने मृतक होरीलाल के भांजे के पास जाकर कहा कि लाशें बिछा दीं, जाकर उठा लाओ...। मृतक होरीलाल के बेटे सुरेश का कहना है कि घटना के बाद गांव का दशरथ उसके ममेरे भाई के पास उंचवा गांव पहुंचकर बोला था, तीनों को मार डाला गया, जाकर लाश उठा लो।
हालांकि, अमर उजाला इसकी पुष्टि नहीं करता है। क्योंकि सुरेश की तहरीर पर ही आठ लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसमें दशरथ लाल चौहान का नाम नहीं है। बात दीगर है कि दशरथ के घर में भी आग लगाई गई।
बाहरी शूटरों के शामिल होने का अंदेशा
जिस तरह से तीन लोगों को गोली मारकर मौत के घाट उतारा गया, उससे अंदेशा है कि वारदात में किसी बाहर के शूटर का भी हाथ हो सकता है। तीनों लोगों को सटाकर एक-एक गोली मारी गई थी। हालांकि एक मृतक की बॉडी से गोली मिली। दो मृतकों के शरीर से गोली आरपार हो गई। तीनों के शव आसपास ही पड़े थे।
आखिरकार आराजी संख्या 344 ने करा ही दिया ट्रिपल मर्डर
चायल तहसील के मोहीउद्दीनपुर गौस गांव स्थित आराजी संख्या 344 ने खूनी खेल कर दिया। जमीन पर कब्जे को लेकर मारपीट की घटनाएं तो अक्सर हुआ करती थीं लेकिन, कत्ल पहली बार हुआ। घटनाओं के बाद पुलिस या तो निरोधात्मक कार्रवाई करती थी या फिर लेनदेन करके मामले को रफा-दफा कर दिया जाता था।
ग्रामीणों के मुताबिक आराजी संख्या 344 बस्ती से बाहर है। 52 बीघे के रकबे वाली जमीन पर काफी पहले से चौहान तथा यादव बिरादरी का कब्जा है। पूर्व के प्रधान व लेखपालों ने खेल कर करीब 20 वर्ष पहले गरीबों के नाम कागज पर तो पट्टा कर दिया लेकिन, कब्जा सिर्फ चौहान तथा यादव बिरादरी को ही दिलाया।
इसी जमीन के पास ही आईटीआई का निर्माण कराया गया है। इसकी वजह से भूमि की कीमत काफी बढ़ गई। अब यहां दो लाख रुपये बिस्वा की जमीन खोजे भी नहीं मिल रही है।
हत्याकांड के बाद भीड़ का गुस्सा इसी बात को लेकर था कि आखिर जब पट्टा दिया गया तो उन्हें कब्जा क्यों नहीं दिलाया गया। उनका कहना था कि चौहान तथा यादव बिरादरी के लोगों ने जो घर बनवाया है, उसका पट्टा किसी अन्य के नाम पर है।
एक पेट और एक हाथ में गोली लगी। आज सुबह सर्जरी करके निकाल लिया गया है। स्थिति स्थिर है। 24 घंटे निगरानी की जा रही है। डॉ. वीके पांडेय सर्जरी विभाग के 24 घंटे बाद ही कहा जा सकता है। गोली निकाल ली गई है।
आईटीआई के चलते बढ़ गई थी भूमि की कीमत
इसी में 10 बिस्वा जमीन का पट्टा लालचंद्र निर्मल को भी मिला था लेकिन वह अपनी जमीन पर आज तक कब्जा नहीं पा सका। इस पर उसने अपने हिस्से की भूमि शिवसरन को बेच दी। इसी जमीन के पास ही आईटीआई का निर्माण कराया गया है। इसकी वजह से भूमि की कीमत काफी बढ़ गई।
ग्रामीणों के मुताबिक अब यहां दो लाख रुपये बिस्वा की जमीन खोजे भी नहीं मिल रही है। तिहरे हत्याकांड के बाद भीड़ का गुस्सा इसी बात को लेकर था कि आखिर जब 20 वर्ष पहले पट्टा दिया गया तो उन्हें कब्जा क्यों नहीं दिलाया गया। उनका कहना था कि चौहान तथा यादव बिरादरी के लोगों ने जो घर बनवाया है, उसका पट्टा किसी अन्य के नाम पर है।
प्रशासन से यही मांग की जा रही थी कि बुलडोजर मंगवाकर अवैध निर्माण गिरवाएं। आरोप लगाया कि चकबंदी, प्रशासन व पुलिस के लोग आते तो हैं लेकिन पैसा लेकर चले जाते हैं। भूमि विवाद को लेकर कई बार झगड़े भी हुए पर पुलिस ने उन्हें या तो रफा-दफा कर दिया या फिर निरोधात्मक कर पल्ला झाड़ लिया।
किलकारी गूंजने से पहले ही माटी में मिल गया चिराग
शिवसरन तथा उसकी पत्नी बृजकली घर आने वाले नन्हें मेहमान को लेकर तमाम तरह के सपने बुन रही थी। जिस झोपड़ी में दंपती रहते थे, उसमें दरवाजा तक नहीं था। ससुर होरीलाल ने बांस काटकर झोपड़े में दरवाजा बनाया था।
छबिलवा गांव निवासी होरीलाल के तीन बेटे क्रमश: सुरेश कुमार, सुभाष, दिलीप तथा चार बेटियां गुड्डी, सुमन, बृजरानी तथा सूरजकली थी। दो वर्ष पहले बृजरानी की शादी के बाद जब दामाद पत्नी को लेकर पड़ोसी गांव मोहीउद्दीन में रहने लगा तो वह भी यहीं आ गए थे। जिस भूमि में दामाद झोपड़ी बनाकर रहता था, विवादित होने के कारण उस पर निर्माण नहीं हो सका।
बृजरानी आशा कार्यकर्ता थी तथा उसकी तैनाती मूरतगंज सीएचसी में थी। उसके भाई सुरेश ने बताया कि बहन को छह माह का गर्भ था। यह उसका पहला बच्चा था। उसके जाने के साथ ही उसकी अंतिम निशानी का भी कत्ल कर दिया गया।
14 साल में कब्जा न दिला पाए...तीन की हो गई हत्या
सिस्टम की खामी, तीन लोगों हत्या। मोहीउद्दीनपुर गौस गांव की जिस जमीन पर कब्जे को लेकर जघन्य वारदात हुई, उस जमीन का पट्टा 14 साल पहले हुए था, लेकिन राजस्व और पुलिस पट्टाधारकों का काबिज न करा पाई। शिवसरन ने हिम्मत दिखाई तो ससुर और पत्नी समेत उसे खत्म कर दिया गया। गांव में जमीन पर कब्जे को लेकर मारपीट की घटनाएं तो अक्सर हुआ करती थीं। पुलिस या तो निरोधात्मक कार्रवाई करती थी या फिर लेनदेन करके मामले को रफा-दफा कर दिया जाता था।
ग्रामीणों के मुताबिक 52 बीघे के रकबे वाली जमीन पर काफी पहले से चौहान तथा यादव बिरादरी का कब्जा है। पूर्व के प्रधान व लेखपालों ने करीब 14 वर्ष पहले गरीबों के नाम कागज पर तो पट्टा कर दिया, लेकिन कब्जा सिर्फ चौहान तथा यादव बिरादरी को ही दिलाया। इसी में 10 बिस्वा जमीन का पट्टा लालचंद्र निर्मल को भी मिला था लेकिन वह अपनी जमीन पर आज तक कब्जा नहीं पा सका। इस पर उसने अपने हिस्से की भूमि शिवसरन को बेच दी। यह बात दबगों को खटक रही थी।