वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :- बीते कुछ दिनों से शहर का रंगमंच गुलजार है, रिकॉर्ड भी बन रहे हैं और नए-नए प्रयोग भी सामने आ रहे हैं। रंगमंच और इसके साधकों के लिए बुधवार का दिन खास था, क्योंकि वरिष्ठ रंगकर्मी आतमजीत सिंह की परिकल्पना व निर्देशन में सात साल बाद शहीद भगतसिंह का मंचन नौटंकी शैली में हो रहा था। लेखक हैं शेषपाल सिंह शेष, जो स्वयं मौजूद रहे। उर्मिल कुमार थपलियाल के बाद आतमजीत सिंह ही लखनऊ में एकमात्र रंगकर्मी हैं जो नौटंकी विधा को संरक्षित करने में जुटे हैं।
मंच पर भावों को अभिव्यक्त करते कलाकार, अपने-अपने पात्रों को जी रहे थे और सूत्रधार उनकी आवाज बनकर कर शब्दों से रोमांच भर रहे थे। जब भगत सिंह फांसी के लिए जाते हैं तो गूंज उठता है नक्कारा और आवाज आती है.. बोला हंसकर वीर.. क्रांति पथ पर जब कदम बढ़ाया, जीवन का जो मूल्य लगाया, उतना मैंने पाया...। एक सन्नाटा खिंच जाता है। वो पल भी दिल को छू जाता है जब गूंजता है काल कोठरी में गए मिलने बंदी यार, तब जयदेव कपूर ने पूछा क्यूं सरदार...जा रहे हो मरने को बतलाओ..है इसका अफसोस तुम्हें क्या सही-सही बतलाओ।
सन्नाटे, रोमांच और प्रभावी अभिनय को एक माह तक कठिन रिहर्सल से तराशा वरिष्ठ रंगकर्मी और नाटक के सहनिर्देशक देवाशीष मिश्रा और सरबजीत ने। भगत सिंह के चरित्र को जीवंत किया परितोष मिश्रा ने, सुखदेव बने थे अंबर गुप्ता, शिवराज चंद्रशेखर आजाद के रूप में थे। राजगुरु का चरित्र निभाया श्रेयांस यादव ने।